चामुंडेश्वरी देवी – मैसूर की आत्मा की प्रचंड रक्षक

मैसूर, जिसे “सांस्कृतिक राजधानी” कहा जाता है, केवल अपने महलों और रॉयल परंपराओं के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहाँ की आत्मा का केंद्र है—चामुंडेश्वरी देवी का मंदिर। चामुंडी हिल्स की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर शक्ति, आस्था, साहस और इतिहास का संगम है।

देवी चामुंडेश्वरी की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुरों के राजा महिषासुर को ब्रह्मा से वरदान मिला था कि कोई भी पुरुष उसका वध नहीं कर सकता। इस अहंकार में डूबकर उसने तीनों लोकों में आतंक फैलाना शुरू कर दिया। देवताओं ने मिलकर अपनी शक्तियों को एकत्रित किया और एक दिव्य नारी शक्ति का सृजन हुआ—वही थीं देवी चामुंडेश्वरी।

सिंह पर सवार होकर उन्होंने महिषासुर से युद्ध किया और चामुंडी पहाड़ियों पर ही उसका वध किया। तभी से उन्हें महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है और यह पहाड़ी उनके नाम से प्रसिद्ध है।

मंदिर का इतिहास और वास्तुकला

  • 12वीं शताब्दी में होयसल शासकों ने इस मंदिर की नींव रखी थी।
  • बाद में विजयनगर साम्राज्य और फिर मैसूर के वोडेयार राजाओं ने इसका विस्तार और सौंदर्यीकरण कराया।
  • वोडेयार राजवंश की देवी चामुंडेश्वरी को कुलदेवी माना जाता था। इसी कारण उन्होंने मंदिर को भव्य स्वरूप दिया।
  • 17वीं शताब्दी से लेकर आज तक, वोडेयार राजाओं ने हर दशहरा उत्सव में देवी की विशेष पूजा और जंबू सावरी (हाथी जुलूस) की परंपरा जारी रखी।

 

 मंदिर की वास्तुकला

  • गोपुरम (प्रवेश द्वार):
  • मंदिर का गोपुरम (प्रवेश टॉवर) लगभग 40 मीटर ऊँचा है।
  • इसमें सात मंजिलें हैं, जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है।
  • सबसे ऊपर सात सुनहरे कलश (शिखर) लगे हुए हैं, जो सूर्य की रोशनी में चमकते हैं।

गर्भगृह (Sanctum):

  • गर्भगृह में आठ भुजाओं वाली चामुंडेश्वरी देवी की मूर्ति विराजमान है।
  • देवी सिंह पर सवार हैं और उनके हाथों में त्रिशूल, तलवार, खड्ग, धनुष, घंटा और शंख जैसे शस्त्र हैं।
  • मूर्ति पर सोने के आभूषण और रेशमी वस्त्र चढ़ाए जाते हैं।

🐃 महिषासुर और 🐂 नंदी की प्रतिमा

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  • मंदिर की ओर जाते हुए 1,000 सीढ़ियों पर सबसे पहले एक विशाल रंगीन महिषासुर की प्रतिमा दिखाई देती है, जो हमें हमेशा याद दिलाती है कि असत्य का अंत निश्चित है।
  • बीच रास्ते पर नंदी बैल की 15 फीट ऊँची प्रतिमा है, जिसे एक ही ग्रेनाइट पत्थर से तराशा गया है। यह लगभग 350 वर्ष पुरानी है और भारत की सबसे बड़ी नंदी मूर्तियों में से एक है।

✨ उत्सव और आस्था

  • मैसूर दशहरा की परंपरा 1610 ईस्वी से शुरू हुई, जब वोडेयार वंश ने देवी चामुंडेश्वरी की पूजा को राज्य पर्व बनाया। आज भी विजयदशमी के दिन देवी की विशेष पूजा होती है।
  • नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। मंदिर फूलों, दीपों और भजनों से जगमगाता है और हजारों भक्त प्रतिदिन 1,000 सीढ़ियाँ चढ़कर माता के दर्शन करते हैं।

🌸 रोचक तथ्य – चामुंडेश्वरी देवी

  1. देवी को मैसूर की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
  2. चामुंडी पहाड़ियों का प्राचीन नाम महाबलाद्री था।
  3. महिषासुर की प्रतिमा 1940 के दशक में बनाई गई थी और आज यह मैसूर का प्रतीक है।
  4. देवी की मूर्ति की आठ भुजाएँ उनके विविध शक्तिरूपों का प्रतीक हैं।
  5. सिंह, उनका वाहन, साहस और निडरता का प्रतीक है।
  6. कुछ मान्यताओं के अनुसार यह स्थान भी एक शक्ति पीठ है।
  7. पहाड़ी से मैसूर पैलेस और करंजी झील का दृश्य अद्भुत होता है।
  8. वोडेयार राजाओं का राज्याभिषेक देवी की पूजा के बिना अधूरा माना जाता था।

🐘 मैसूर दशहरा और हाथी यात्रा (जंबू सावरी)

  • मैसूर दशहरा का मुख्य आकर्षण है जंबू सावरी, जिसमें देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा को सोने के हौदे (Golden Howdah) में सजाया जाता है।
  • यह सोने का हौदा लगभग 750 किलो वजनी है और इसे एक सजे-धजे हाथी की पीठ पर रखा जाता है।
  • विजयदशमी के दिन यह हाथी जुलूस (Elephant Procession) मैसूर पैलेस से शुरू होकर पूरे शहर से गुजरता है।
  • हाथी, घोड़े और ऊँटों की कतार, सांस्कृतिक नृत्य, संगीत और झाँकियाँ इस जुलूस को भव्य बना देते हैं।
  • लाखों लोग इस शोभायात्रा को देखने आते हैं और इसे पूरे भारत में सबसे अनोखा दशहरा उत्सव माना जाता है।
  • माना जाता है कि वोडेयार राजाओं ने 17वीं शताब्दी से इस परंपरा की शुरुआत की थी, और आज भी इसे पूरे वैभव के साथ निभाया जाता है।

यात्रा मार्गदर्शन

कैसे पहुँचे?

  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा मैसूर एयरपोर्ट (15 किमी) और बंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (170 किमी)।
  • रेल मार्ग: मैसूर रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 13 किमी दूर है।
  • सड़क मार्ग: बंगलुरु और आसपास के शहरों से बस और टैक्सी उपलब्ध हैं।

सबसे अच्छा समय

  • अक्टूबर (दशहरा) और सितंबर-अक्टूबर (नवरात्रि) का समय सबसे उपयुक्त है।

टिप्स

  • अगर आप सीढ़ियाँ चढ़ते हैं तो पानी और हल्का भोजन साथ रखें।
  • सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पहाड़ी से दृश्य सबसे आकर्षक होता है।
  • मंदिर के पास फोटोग्राफी के लिए कई बेहतरीन स्थान हैं।

🌄 क्यों जाएँ?

चामुंडी हिल्स पर चढ़ाई केवल एक यात्रा नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यहाँ हर कदम साहस और आत्मविश्वास की ओर बढ़ता है। ऊपर से मैसूर शहर का विहंगम दृश्य देखने लायक होता है।

 📿 अंतिम विचार

वह सिंह पर सवार हैं, पर हर निडर हृदय में वास करती हैं।
वह असुरों का वध करती हैं, पर भक्तों को मातृस्नेह से पोषित करती हैं।
चामुंडेश्वरी कोई कथा मात्र नहीं—वे जीवित शक्ति हैं, जो आज भी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।

📌 डिस्क्लेमर

यह लेख हिंदू धर्मग्रंथों, पुराणों, लोककथाओं और स्थानीय परंपराओं पर आधारित है। विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में देवी चामुंडेश्वरी से जुड़ी कथाएँ अलग-अलग रूपों में प्रचलित हैं। इस लेख का उद्देश्य केवल सांस्कृतिक और शैक्षणिक जानकारी साझा करना है। हम सभी आस्थाओं और मान्यताओं का सम्मान करते हैं।

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