नवरात्रे में मां शैलपुत्री की पूजा क्यों की जाती है?
नवरात्रि हिंदू धर्म का अत्यंत पवित्र पर्व है, जिसे देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री (Maa Shailputri) को समर्पित होता है। वे देवी दुर्गा का पहला स्वरूप हैं और इन्हें पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है।
मां शैलपुत्री की पूजा जीवन में स्थिरता, शक्ति और आध्यात्मिक उन्नति लाने का काम करती है। आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से।
मां शैलपुत्री कौन हैं?
शैलपुत्री का शाब्दिक अर्थ है “पर्वतराज की पुत्री।” वे भगवान शिव की पत्नी और देवी पार्वती का रूप मानी जाती हैं।
जन्म और पौराणिक कथा
मां शैलपुत्री का जन्म हिमालय के राजकुमार के घर हुआ। उनका पूर्वजन्म सती था। सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान को सहन न कर पाने के कारण यज्ञकुंड में देह त्याग दी थी। इसके बाद वे हिमालय राज के घर जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
शैलपुत्री ने कठोर तपस्या और भक्ति से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। इन्हें शक्ति और धैर्य का अवतार माना जाता है।
शैलपुत्री का स्वरूप
मां शैलपुत्री के स्वरूप में कई विशेषताएँ हैं:
- त्रिशूल और कमल – उनके दाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प होता है।
- नंदी (बैल) पर सवार – यह शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है।
- मुखमंडल शांत और तेजस्वी – इनकी दृष्टि से भक्तों में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
- लाल वस्त्र और गहने – शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक।
शैलपुत्री का स्वरूप सरल, परन्तु अत्यंत प्रभावशाली है। उनका दृष्टि का प्रभाव भक्त के मन और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है।
नवरात्रि में शैलपुत्री की पूजा का महत्व
मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- शक्ति साधना की शुरुआत
नवरात्रि के पहले दिन उनका पूजन इसलिए किया जाता है क्योंकि वे शक्ति का मूल स्रोत हैं। उनके पूजन से साधक आगे की नौ दिन की साधना के लिए मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार होता है। - स्थिरता और धैर्य की प्राप्ति
शैलपुत्री की आराधना से व्यक्ति में स्थिरता और धैर्य का विकास होता है। जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों में यह शक्ति मददगार साबित होती है। - मूलाधार चक्र की जागृति
योग और तंत्र के अनुसार, मां शैलपुत्री मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री हैं। उनके ध्यान और पूजन से चक्र सक्रिय होता है और ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होता है। - जीवन में सुख-समृद्धि
परिवार में शांति, प्रेम और आर्थिक समृद्धि के लिए भी उनकी पूजा अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है। - दुर्गा पूजा की पूर्णता
नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की आराधना न करने पर नवरात्रि पूजा अधूरी मानी जाती है।
मां शैलपुत्री की कथा
मां शैलपुत्री की कथा धार्मिक ग्रंथों में इस प्रकार वर्णित है:
- दक्ष प्रजापति का यज्ञ – सती के पिता दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।
- सती का बलिदान – सती ने पिता के अपमान को सहन न कर यज्ञकुंड में देह त्याग दी।
- हिमालय में जन्म – अगले जन्म में वे हिमालय राजकुमार के घर जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
- भगवान शिव से मिलन – कठोर तपस्या और भक्ति से उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया।
इस कथा से यह सिखने को मिलता है कि सच्ची भक्ति और धैर्य से जीवन की सभी बाधाएँ पार की जा सकती हैं।
पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा विशेष विधि से की जाती है।
- स्नान और स्वच्छ वस्त्र – सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- कलश स्थापना – घर में कलश स्थापित कर उसमें जल भरें।
- मूर्ति या तस्वीर स्थापना – मां शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर रखें।
- फूल और नैवेद्य – लाल या गुलाबी फूल, दूध, घी, शक्कर अर्पित करें।
- दीपक और धूप – पूजा स्थल पर दीपक और धूप जलाएँ।
- मंत्र जाप – शैलपुत्री मंत्र का जाप करें।
मां शैलपुत्री मंत्र
बीज मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
जो भी जन तेरा गुण गाता, मनवांछित फल पाता॥
पूजा का भोग
मां शैलपुत्री को विशेष रूप से घी का भोग प्रिय है।
- घी का दीपक जलाने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- घी और अन्य नैवेद्य अर्पित करने से कष्ट और रोग दूर होते हैं।
योग और साधना में महत्व
मां शैलपुत्री मूलाधार चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं।
- साधना और ध्यान में उनका ध्यान करने से साधक स्थिर और संतुलित बनता है।
- मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है।
- साधक को मोक्ष और आत्मज्ञान की प्राप्ति में मदद मिलती है।
मां शैलपुत्री की पूजा के लाभ
- आरोग्य और रोग निवारण – स्वास्थ्य में सुधार।
- विवाह में सफलता – विवाह में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।
- भक्ति और शक्ति – आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा।
- कुटुंब सुख – परिवार में शांति और प्रेम।
- धन-समृद्धि – आर्थिक स्थिति मजबूत।
मान्यताएँ और नियम
- नवरात्रि के पहले दिन पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
- मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने से अन्य देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है।
- श्रद्धा और पूर्ण विश्वास से पूजा करनी चाहिए।
वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
- वैज्ञानिक दृष्टि – नवरात्रि में उपवास और सात्विक भोजन से शरीर और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- आध्यात्मिक दृष्टि – माता शैलपुत्री की भक्ति से मानसिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
